Saturday, January 19, 2013

कोशिशें जारी हैं

मनोबल
एक ऐसी दीवार होता है
जिसकी नींव
कभी कभी संशय में रहती है
कभी तन कर
अपनी जगह
बनाए रखती है दीवार को
और कभी
एक ठोकर में ही
ढह जाने देती है

मेरा मन
मेरा मनोबल
स्थिर है
चिकने घड़े की तरह
बे परवाह है
फिर भी
लातों की
कोशिशें जारी हैं
विध्वंस को
अंजाम देने की। 

©यशवन्त माथुर©

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

हर दिन स्थिर,
रातें संयत,
हर दिन बढ़ना,
अपने पथ पर।

दिगम्बर नासवा said...

कोशिश तो हर कोई करेगा ... पर आत्मबल तभी तो आत्मबल है ...

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