Monday, January 28, 2013

बदतमीज़ सपने

बदतमीज़ सपने 
रोज़ रात को 
चले आते हैं 
सीना तान कर 
और सुबह होते ही 
निकल लेते हैं 
मूंह चिढ़ा कर 
क्योंकि 
बंद मुट्ठी का 
छोटा सा कमरा 
कमतर है 
बड़े सपनों की 
हैसियत के सामने।
  
©यशवन्त माथुर©

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

हर रात चिढ़ा कर चले जाते हैं सपने..

Madan Mohan Saxena said...

simply superb.

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