Tuesday, January 29, 2013

काश!

काश!
इन्सान भी होता
वक़्त की तरह
तो कहीं से भी हो कर
गुज़र सकता ....
खुद ही मिल जाती
अमरता ....
न रुकता कहीं
न कभी थकता ....
काश!
इन्सान भी
वक़्त की तरह होता। 

©यशवन्त माथुर©

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

प्रकृति रही दुर्जेय पराजय

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