Wednesday, January 30, 2013

बापू !

(1)

बापू !
राजघाट पर
आज लगे जमघट में
मुझे तलाश है
उन तीन बंदरों की
जो हुआ करते थे
कभी तुम्हारे हमराही
पर आज जो
छुपे बैठे हैं
फर्जी प्रवचनों और
मुखौटों के ढेर में कहीं। 

(2)

बापू!
तुम आज
दीवार पर टंगी
वह तस्वीर हो
जो मुस्कुराते हुए 
रो रही है
देख कर
आजादी का
एक नया रूप
हाँ
आजादी का नया रूप
जिसमें
नाबालिग को
अधिकार नहीं रोजगार का
पर
उसके कुकर्मों को
मिल जाता है
'उचित' न्याय।

(3)

बापू!
मैं नहीं कर रहा कामना 
तुम्हारी आत्मा की शांति की
क्योंकि मुझे पता है
तुम कुलबुला रहे हो
फिर से
इस धरती पर
आने को।

©यशवन्त माथुर©

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

बापू को काश यह सब पता रहता..

दिगम्बर नासवा said...

बापू नहीं आएंगे ... अपने अनुयायियों का चरित्र देख चुके हैं ...

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