चित्र-जूही श्रीवास्तव जी की फेसबुक वॉल से |
हाथों में ढेर सारे
'दिल' पकड़े
दिलवालों के इंतज़ार में
उसका दिन बीत गया
दिल वाले आते गये
'दिल' लेते गये
किसी को देते गये
और वो
खुश होता रहा
आज भी
वो उसी जगह खड़ा है
आज हाथ मे दिल नहीं
सरस्वती हैं
लोग आ रहे हैं
उसके पास
खरीद रहे हैं
ज्ञान की देवी को
सजाने के लिये
मंदिरों
और घरों में
पूजा के लिये
वो
कभी हँसता है
मुसकुराता है
कभी बना लेता है
गंभीर सा चेहरा
वह भाग्य भी है
और कर्म भी है
पर क्या
कहीं कोई है
जो मिलवा सके उसे
सच्ची सरस्वती से ?
©यशवन्त माथुर©
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