Tuesday, February 19, 2013

सोच रहा हूँ-

सोच रहा हूँ-
वक़्त -बेवक्त दिखने वाली
धूप छांव की
इस मृग मरीचिका में
सुस्ताती हुई
जीवन कस्तूरी
आखिर क्या पाती है
यूं पहेलियाँ बुझाने से ?

©यशवन्त माथुर©

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

प्यास बुझाना ही आगे बढ़ने का लक्षण है..

दिगम्बर नासवा said...

जीवन में ऐसा क्यों होता है इसका तो कोई जवाब नहीं मिल पाता ...

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