अक्स बन कर अक्षर अक्षर
कहता मन के जज़्बातों को
फिर भी जो अब बची रह गईं
कैसे कह दूँ उन बातों को ?
बातों का आधार बड़ा है
बातों पर संसार खड़ा है
कोई होता विचलित पल में
कोई अंगद पाँव अड़ा है ।
बिखरी बिखरी बातें अक्सर
बनती भाषा,लिपि या अक्षर
और जो कुछ भी बन न सकीं तो
कैसे खोलूँ मन के पाटों को
कैसे कह दूँ उन बातों को ?
©यशवन्त माथुर©
कहता मन के जज़्बातों को
फिर भी जो अब बची रह गईं
कैसे कह दूँ उन बातों को ?
बातों का आधार बड़ा है
बातों पर संसार खड़ा है
कोई होता विचलित पल में
कोई अंगद पाँव अड़ा है ।
बिखरी बिखरी बातें अक्सर
बनती भाषा,लिपि या अक्षर
और जो कुछ भी बन न सकीं तो
कैसे खोलूँ मन के पाटों को
कैसे कह दूँ उन बातों को ?
©यशवन्त माथुर©
No comments:
Post a Comment