Sunday, February 3, 2013

कैसे कह दूँ उन बातों को ?

अक्स बन कर अक्षर अक्षर
कहता मन के जज़्बातों को
फिर भी जो अब बची रह गईं
कैसे कह दूँ उन बातों को ?

बातों का आधार बड़ा है
बातों पर संसार खड़ा है
कोई होता विचलित पल में
कोई अंगद पाँव अड़ा है ।

बिखरी बिखरी बातें अक्सर
बनती  भाषा,लिपि या अक्षर 
और जो कुछ भी बन न सकीं तो
कैसे खोलूँ मन के पाटों को

कैसे कह दूँ उन बातों को ?
 
©यशवन्त माथुर©

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