Wednesday, February 6, 2013

इन राहों पर- चौराहों पर.....

इन राहों पर- चौराहों पर
जब भी खुद को पाता हूँ
शोर के संगीत सुरों में
कुछ यूं ही गुनगुनाता हूँ

चाहा तो लिखना बहुत है
चाहा तो कहना बहुत है
बीच राह पर चलते चलते
गिरना कभी संभलना बहुत है

लिखने को कलम तलाश कर
कहने को ज़बान तराश कर 
मन की किताब के कोरे पन्ने पर
लिखता कुछ मिटाता हूँ

कहता कुछ समझाता हूँ
बस यूं ही आता जाता हूँ
इन राहों पर- चौराहों पर
जब भी खुद को पाता हूँ

©यशवन्त माथुर©

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

लिखना मिटना, जीवन बढ़ना,
तनिक उतरना, फिर फिर चढ़ना।

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