Saturday, February 9, 2013

एक दिन मैं भी इनमे बैठूँगा !

आसमान से गुज़रा
हवाई जहाज़
और उसी क्षण
सामने की पटरी से
गुजरती रेल

पलक झपकते
दोनों का गायब हो जाना
मंज़िल से चल कर
मंज़िल की ओर
फिर आना
फिर से जाना
कितने ही चक्कर
रोज़ लगाना

उस पार की
गंदी बस्ती में
रहने वाला
काला-मैला
4 साल का छोटू
नज़रों के सामने से
और सिर के ऊपर से
भागते
सपनों को थामने की
कोशिश करता हुआ
माँ से कहता है -
एक दिन मैं भी
इनमे बैठूँगा !

©यशवन्त माथुर©

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

काश, बच्चों के सपने सच हों..

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