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Friday, February 22, 2013
आतंकवादी बम धमाकों पर...
न जाने कौन से हैं दिल जो
दिलों के चीथड़े उड़ाते हैं,
इधर उज़ड़ती हैं जिंदगियां
और उधर ठहाके लगाते हैं....
वो आंखें हैं कि शीशा हैं
कि उनमें मर चुका पानी,
इधर होता है अँधेरा
उधर वो जश्न मनाते हैं.....
न जाने क्या वो खाते हैं
न जाने क्या वो पाते हैं
न जाने कौन सी दुनिया
जहां से वे आते जाते हैं....
मिले जो ईश्वर उससे
यही होगा सवाल अपना,
कि सारे पैदा होते ही दरिन्दे
मर क्यों नहीं जाते हैं....
- VISHAAL CHARCHCHIT
4 comments:
प्रवीण पाण्डेय
said...
निर्णय कठिन कौन लेगा अब..
February 23, 2013 at 8:39 AM
Onkar
said...
सामयिक रचना
February 24, 2013 at 10:00 AM
संगीता स्वरुप ( गीत )
said...
अच्छी प्रस्तुति
February 24, 2013 at 11:09 AM
रश्मि शर्मा
said...
सामयिक रचना..बहुत बढ़िया
February 24, 2013 at 3:48 PM
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निर्णय कठिन कौन लेगा अब..
सामयिक रचना
अच्छी प्रस्तुति
सामयिक रचना..बहुत बढ़िया
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