Monday, March 11, 2013

सोच......(कुछ विचार)

 (1)

सोच
जितनी असीमित
और अनंत होती है
कभी कभी
लगा देती है
उतने ही अनंत
असीमित प्रश्न चिह्न
खुद के माथे पर

(2)

सोच
कभी
होती है
मिट्टी के मोल
और कभी
हीरे से भी महंगी
कभी तुलती है
टनों में
और कभी
रत्ती या छ्टांक में
फिर भी
बनाए रखती है
अपना अस्तित्व
बंद मुट्ठी के खुलते ही
बिखर जाती है
एक की
अनेक हो कर!

©यशवन्त माथुर©

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

सोच अपने पंथ गढ़ने की शक्ति रखती है।

दिगम्बर नासवा said...

उन प्रश्निं का जवाब भी तो फिर सोच ही देती है ...

Anonymous said...

When I originally commented I clicked the "Notify me when new comments are added" checkbox and now each
time a comment is added I get three e-mails with the same comment.
Is there any way you can remove people from
that service? Thank you!

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