(1)
सोच
जितनी असीमित
और अनंत होती है
कभी कभी
लगा देती है
उतने ही अनंत
असीमित प्रश्न चिह्न
खुद के माथे पर
(2)
सोच
कभी
होती है
मिट्टी के मोल
और कभी
हीरे से भी महंगी
कभी तुलती है
टनों में
और कभी
रत्ती या छ्टांक में
फिर भी
बनाए रखती है
अपना अस्तित्व
बंद मुट्ठी के खुलते ही
बिखर जाती है
एक की
अनेक हो कर!
©यशवन्त माथुर©
3 comments:
सोच अपने पंथ गढ़ने की शक्ति रखती है।
उन प्रश्निं का जवाब भी तो फिर सोच ही देती है ...
When I originally commented I clicked the "Notify me when new comments are added" checkbox and now each
time a comment is added I get three e-mails with the same comment.
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