Saturday, August 10, 2013

सिर्फ एक झूठ

आज डायरी के पन्नें पलटते हुये एक पुरानी कविता मिली....
लिजिये ये रही..
अगाध रिश्ता है सच झूठ का
सच का अस्तित्व ही
समाप्त हो जाता है
सिर्फ़ एक झूठ से ।
अपरम्पार महिमा है झूठ की
चेहरे से चेहरा छुप जाता है
इंसानों का ज़ज़्बा खो जाता है
सिर्फ एक झूठ से ।
अगण्य होते हैं पहलू
हर एक झूठ के
रिश्ते भी तोले जाते हैं
सिर्फ एक झूठ से ।
अक्त हुयी कोई बात
उभर के ना आ पाये
यही उम्मीदें होती हैं
सिर्फ एक झूठ से ।
कहानी खूब सूनी होंगी
सूनी कभी झूठ की कहानी
कभी सच भी हार जाता है
सिर्फ एक झूठ से ।
अनगिनत सवाल होते हैं
पर समाधान कोई नहीं
सवाल ठुकरा दिया जाता है
सिर्फ एक झूठ से ।
अनकहे अल्फाजों में
जो कुछ बातें रह जाती हैं
उनका वजूद खो जाता है
सिर्फ एक झूठ से ।
© दीप्ति शर्मा

10 comments:

amit kumar srivastava said...

कुछ झूठ मीठे भी होते हैं । उन्हें बोलने की इजाजत होनी चाहिए ।

अरुन अनन्त said...

आपकी यह रचना आज शनिवार (10-08-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

Unknown said...

कई बार झूठ बोलना लाजिमी हो जाता हैं.उम्दा पोस्ट

Unknown said...

You are right, one truth is always the same,where as for each lie one has to give many reasons & change each statement.
Please visit my blog Unwarat.com & after reading do give your comments.
Vinnie

वसुन्धरा पाण्डेय said...

सच में ,,कई बार किसी भला के लिए भी झूठ बोलना पड़ता है...
बहुत सुन्दर रचना आपकी

Pramod Kumar Kush 'tanha' said...

बहुत सुंदर भाव ... सादगी एवं लेखन का अच्छा संगम ...

अरुन अनन्त said...

आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (11-08-2013) के चर्चा मंच 1334 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

निवेदिता श्रीवास्तव said...

अच्छी चिन्तन धारा बहा दी आपने ......

Asha Joglekar said...

सच का पहन के सूट,
चला जा रहा है झूट ।

Saras said...

कभी कभी झूठ की इस ताक़त से डर लगता है .....क्या होगा सच का हश्र....

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