Monday, May 19, 2014

हे पार्थ !

हे पार्थ !
मैं सिंहासन पर बैठा
अपने धर्म और कर्म से
अंधा मनुष्य ,
मैं धृतराष्ट्र
देखता रहा , सुनता रहा
और द्रोपती के चीरहरण में
सभ्यता , संस्कृति
तार तार हुयी
धर्म के सारे अध्याय बंद हुए ,
तब मैं बोला धर्म के विरुद्ध
जब मैं अंधा था
पर आज
आँखें होते हुए भी नहीं देख पाता
आज सिंहासन पर बैठा
मैं मौन हूँ
उस सिंहासन से बोलने के पश्चात
हे पार्थ
सदियों से आज तक
मैं मौन हूँ।

दीप्ति शर्मा

1 comment:

शकुन्‍तला शर्मा said...

वस्तुतः धृतराष्ट्र के अँधे- पन से महाभारत नहीं हुआ , उसकी बुध्दि की विकलांगता के कारण ही महाभारत का युध्द हुआ । shaakuntalam.blogspot.in

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