उमड़ आयी बदली
तेरे लाज के घूँघट से
द्वार पर खड़ी तू
बेतस बाट जोहती
झलक गये तेरे केशू
तेरे आँखों के अर्पण से |
पनघट पे तेरा आना
भेष बदल गगरी छलकाना
छलक गयी गगरी तेरी
तेरे लाज के घूँघट से |
सजीले पंख सजाना
प्रतिध्वनित वेग से
झरकर गिर आयी
तेरे पाजेब की रुनझुन से |
रागों को त्याग
निष्प्राण तन में उज्जवल
उस अनछुई छुअन में
बरस गयी बदली
तेरे लाज के घूँघट से
उमड़ आयी बदली
तेरे लाज के घूँघट से
- दीप्ति शर्मा
www.deepti09sharma.blogspot.com
2 comments:
bahut badiya , bahut sundar
एक मर्म स्पर्शी रचना........बधाई हो दीप्ति !!!
Post a Comment