Saturday, October 1, 2011

तेरे लाज के घूँघट से


                                            

उमड़ आयी बदली 
तेरे लाज के घूँघट से 
द्वार पर  खड़ी तू 
बेतस बाट जोहती 
झलक गये तेरे केशू
तेरे आँखों के अर्पण से |

पनघट पे तेरा आना 
भेष बदल गगरी छलकाना 
छलक गयी गगरी तेरी 
तेरे लाज के घूँघट से |

सजीले पंख सजाना 
प्रतिध्वनित  वेग से 
झरकर गिर आयी 
तेरे पाजेब की रुनझुन से |

रागों को त्याग 
निष्प्राण तन में उज्जवल 
उस अनछुई छुअन में 
बरस गयी बदली 
तेरे लाज के घूँघट से 
उमड़ आयी बदली 
तेरे लाज के घूँघट से 
- दीप्ति शर्मा 


www.deepti09sharma.blogspot.com

                                                   

2 comments:

संजय कुमार चौरसिया said...

bahut badiya , bahut sundar

विशाल सिंह (Vishaal Singh) said...

एक मर्म स्पर्शी रचना........बधाई हो दीप्ति !!!

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