Monday, September 19, 2011

समझो गर तुम


                                               
शिकायत नहीं है वफ़ा से तुम्हारी 
फिर भी तन्हाइयों के पास हूँ |

उलझी हूँ अपनी ही कुछ बातों से 
फिर भी तो जिन्दगी की मैं आस हूँ |

क्यूँ ढूंढते हो मुझमें वो खुशियाँ 
मैं तो अपने जीवन से निराश हूँ |

कोई अनजाना डर तो है दिल में
वजह से उसकी ही मैं उदास  हूँ |

ज़िन्दगी जो अनजान है मुझसे 
रंजों से ज़िन्दगी की मैं हताश हूँ |
- दीप्ति शर्मा 

4 comments:

Rajesh Kumari said...

vaah bahut khoob.

विशाल चर्चित (Vishal Charchit) said...

दीप्ती दुःख और उदासी में आपकी पीएचडी हैं क्या.....??? आती हैं.....4 -6 लाइनें सुनाती हैं......तमाम टूटे दिलों पे मरहम लगाती हैं......फिर लगातार बस ''वाह - वाह '' की आवाजें ही आती हैं..........

Anonymous said...

bahut khoob deepti nice one yar

ashutosh said...

मेरी वफ़ा उनके हिस्से में और उनकी दी तन्हाई मेरे हिस्से आई
खुदा की नेमत मुहब्बत मेरी जिन्दगी में आई पर इस तरह आई
अपनी ही हसरत में खुद उलझी हूँ फिर भी शराफत मेरे हिस्से आई
अपने ही दरवाजो में बंद ख़ुशी मेरी मेरी उदास सूरत तेरे हिस्से आई
अनजानी ठोकरों से डरती हूँ हर राह में चलने से पहले बेचारगी मेने पाई
रंजो गम के तहखाने में जिन्दगी के सपनो की चीखे मुझको दी सुनाई

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