शिकायत नहीं है वफ़ा से तुम्हारी
फिर भी तन्हाइयों के पास हूँ |
उलझी हूँ अपनी ही कुछ बातों से
फिर भी तो जिन्दगी की मैं आस हूँ |
क्यूँ ढूंढते हो मुझमें वो खुशियाँ
मैं तो अपने जीवन से निराश हूँ |
कोई अनजाना डर तो है दिल में
वजह से उसकी ही मैं उदास हूँ |
ज़िन्दगी जो अनजान है मुझसे
रंजों से ज़िन्दगी की मैं हताश हूँ |
- दीप्ति शर्मा
4 comments:
vaah bahut khoob.
दीप्ती दुःख और उदासी में आपकी पीएचडी हैं क्या.....??? आती हैं.....4 -6 लाइनें सुनाती हैं......तमाम टूटे दिलों पे मरहम लगाती हैं......फिर लगातार बस ''वाह - वाह '' की आवाजें ही आती हैं..........
bahut khoob deepti nice one yar
मेरी वफ़ा उनके हिस्से में और उनकी दी तन्हाई मेरे हिस्से आई
खुदा की नेमत मुहब्बत मेरी जिन्दगी में आई पर इस तरह आई
अपनी ही हसरत में खुद उलझी हूँ फिर भी शराफत मेरे हिस्से आई
अपने ही दरवाजो में बंद ख़ुशी मेरी मेरी उदास सूरत तेरे हिस्से आई
अनजानी ठोकरों से डरती हूँ हर राह में चलने से पहले बेचारगी मेने पाई
रंजो गम के तहखाने में जिन्दगी के सपनो की चीखे मुझको दी सुनाई
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