Sunday, October 7, 2012


कितनी आसानी से सबको टोपी पहना देता है
जालिम दिल्ली वाला दिल सबको बहला देता है

जेब से लेकर चूल्हे तक सब पर पहरेदारी है
जली रोटियां खाने बैठो, वह भी मंगवा लेता है

एक पहेली आज तलक समझ न पाया हिन्दोस्तां
सत्ता में आते ही नेता झोली भरवा लेता है

चिकना चाबुक पीठ के पीछे, और लबों पर मीठे बोल
भारत मां को गैर की खातिर गिरवी रखवा देता है

-कुंवर प्रीतम
7-10-2012



6 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

समसामयिक रचना

Madan Mohan Saxena said...

शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन....बहुत खूब
बेह्तरीन अभिव्यक्ति

Akash Mishra said...

आज के समय की रचना, सुंदर

सादर
आकाश

नादिर खान said...

वाह भई वाह ...

मेरा मन पंछी सा said...

सटीक :-)

प्रतिभा सक्सेना said...

सारे देश पे टैक्स लगा कर मौज उड़ाती है दिल्ली १

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