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Saturday, May 11, 2013
एक दरियाफ्त की थी
कभी ईश्वर से
दे दो मुट्ठी भर आसमान
आज़ादी से उड़ने के लिए
और आज उसने
ज़िन्दगी का पिंजरा खोल दिया
और कहा ले उड़ ले .।
- दीप्ति शर्मा
2 comments:
दिगम्बर नासवा
said...
इस उड़ान पे अब खुद का साथ ही देना होगा ...
May 12, 2013 at 3:03 PM
Yashwant R. B. Mathur
said...
बहुत ही बढ़िया
सादर
May 12, 2013 at 5:57 PM
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2 comments:
इस उड़ान पे अब खुद का साथ ही देना होगा ...
बहुत ही बढ़िया
सादर
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