Wednesday, June 5, 2013

ख़ामोशी



मांग करने लायक
कुछ नहीं बचा
मेरे अंदर
ना ख्याल , ना ही
कोई जज्बात
बस ख़ामोशी है
हर तरफ अथाह ख़ामोशी
वो शांत हैं
वहाँ ऊपर
आकाश के मौन में
फिर भी आंधी, बारिश
धूप ,छाँव  में
अहसास करता है
खुद के होने का
उसके होने पर भी
नहीं सुन पाती मैं
वो मौन ध्वनि
आँधी में उड़ते
उन पत्तों में भी नहीं
बारिस की बूंदों में भी नहीं
मुझे नहीं सुनाई देती
बस महसूस होता है
जैसे मेरी ये ख़ामोशी
आकाश के मौन में
अब विलीन हो चली है ।
- दीप्ति शर्मा


3 comments:

Yashwant R. B. Mathur said...

मर्म स्पर्शी एहसास


सादर

Madan Mohan Saxena said...

simply superb.

yashoda Agrawal said...

कहाँ गायब रहती हैं आप
आँखे तरस जाती है....

मन को छूकर निकलती रचना

सादर


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