Monday, July 28, 2014

मैं जी रही हूँ प्रेम
अँगुली के पोरों में रंग भर
दीवार पर चित्रों को उकेरती
तुम्हारी छवि बनाती
मैं रच रही हूँ प्रेम
रंगों को घोलती
गुलाबी, लाल,पीला
हर कैनवास को रंगती
तुम्हारी रंगत से
मैं रंग रही हूँ प्रेम
तुम्हारे लिये
हर दीवार पर
जिस पर तुम
सिर टिका कर बैठोगे ।
ⓒ दीप्ति शर्मा

4 comments:

प्रतिभा सक्सेना said...

एक आत्मलीनता से भरा भाव -सुन्दर रचना !

Unknown said...

खूबसूरत

Unknown said...

बहुत खूब

Pratibha Verma said...


बेहतरीन...

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