मैं जी रही हूँ प्रेम
अँगुली के पोरों में रंग भर
दीवार पर चित्रों को उकेरती
तुम्हारी छवि बनाती
मैं रच रही हूँ प्रेम
रंगों को घोलती
गुलाबी, लाल,पीला
हर कैनवास को रंगती
तुम्हारी रंगत से
मैं रंग रही हूँ प्रेम
तुम्हारे लिये
हर दीवार पर
जिस पर तुम
सिर टिका कर बैठोगे ।
ⓒ दीप्ति शर्मा
4 comments:
एक आत्मलीनता से भरा भाव -सुन्दर रचना !
खूबसूरत
बहुत खूब
बेहतरीन...
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